भारतीय संविधान के महत्त्वपूर्ण संशोधन
संविधान संशोधन (Important Constitution Amendment)– संविधान के भाग 20 का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान तथा इसकी प्रक्रियाओं को संशोधित करने की शक्तियाँ प्रदान करता है। अनुच्छेद 368 में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार संसद संविधान में नये उपबंध जोड़कर या किसी उपबंध को हटाकर या बदलकर संविधान में संशोधन कर सकती है।
- संविधान संशोधन में तीन विधियों द्वारा अपनाया गया है: साधारण विधि द्वारा संशोधन, संसद के विशेष बहुमत द्वारा और संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान-मंडलों की स्वीकृति से संशोधन।
- संसद संविधान के मूल ढाँचे से जुड़े प्रावधानों में संशोधन नहीं कर सकती है। मूल ढाँचे से जुड़े सिद्धांत को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती वाद (वर्ष 1973) में प्रतिपादित किया था
महत्त्वपूर्ण संशोधनः
पहला संविधान संशोधन (1951) — इस संशोधन द्वारा नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया।
दूसरा संविधान संशोधन (1952) — संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित किया गया।
सातवां संविधान संशोधन (1956) — इस संशोधन द्वारा राज्यों का अ, ब, स और द वर्गों में विभाजन समाप्त कर उन्हें 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित क्षेत्रों में विभक्त कर दिया गया।
दसवां संविधान संशोधन (1961) — दादरा और नगर हवेली को भारतीय संघ में शामिल कर उन्हें संघीय क्षेत्र की स्थिति प्रदान की गई।
12वां संविधान संशोधन (1962) — गोवा, दमन और दीव का भारतीय संघ में एकीकरण किया गया।
13वां संविधान संशोधन (1962) — संविधान में एक नया अनुच्छेद 371 (अ) जोड़ा गया, जिसमें नागालैंड के प्रशासन के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए। 1दिसंबर, 1963 को नागालैंड को एक राज्य की स्थिति प्रदान कर दी गई।
14वां संविधान संशोधन (1963) — पांडिचेरी को संघ राज्य क्षेत्र के रूप में प्रथम अनुसूची में जोड़ा गया तथा इन संघ राज्य क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश, गोवा, दमन और दीव, पांडिचेरी और मणिपुर) में विधानसभाओं की स्थापना की व्यवस्था की गई।
21वां संविधान संशोधन (1967) — आठवीं अनुसूची में ‘सिंधी’ भाषा को जोड़ा गया।
22वां संविधान संशोधन (1968) — संसद को मेघालय को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने तथा उसके लिए विधानमंडल और मंत्रिपरिषद का उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई।
24वां संविधान संशोधन (1971) — संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन का अधिकार दिया गया।
27वां संविधान संशोधन (1971) — उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र के पाँच राज्यों तत्कालीन असम, नागालैंड, मेघालय, मणिपुर व त्रिपुरा तथा दो संघीय क्षेत्रों मिजोरम और अरुणालच प्रदेश का गठन किया गया तथा इनमें समन्वय और सहयोग के लिए एक ‘पूर्वोत्तर सीमांत परिषद्’ की स्थापना की गई।
31वां संविधान संशोधन (1974) — लोकसभा की अधिकतम सदंस्य संख्या 545 निश्चित की गई। इनमें से 543 निर्वाचित व 2 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होंगे।
36वां संविधान संशोधन (1975) — सिक्किम को भारतीय संघ में 22वें राज्य के रूप में प्रवेश दिया गया।
37वां संविधान संशोधन (1975) — अरुणाचल प्रदेश में व्यवस्थापिका तथा मंत्रिपरिषद् की स्थापना की गई।
42वां संविधान संशोधन (1976) — इसे ‘लघु संविधान’ (Mini Constitution) की संज्ञा प्रदान की गई है।
- इसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’, ‘समाजवादी’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए।
- इसके द्वारा अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की व्यवस्था करते हुए नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्य निश्चित किए गए।
- लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्यकाल में एक वर्ष की वृद्धि की गई।
- नीति-निर्देशक तत्वों में कुछ नवीन तत्व जोड़े गए।
- इसके द्वारा शिक्षा, नाप-तौल, वन और जंगली जानवर तथा पक्षियों की रक्षा, ये विषय राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में रख दिए गए।
- यह व्यवस्था की गई कि अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल संपूर्ण देश में लागू किया जा सकता है या देश के किसी एक या कुछ भागों के लिए।
- संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया।
44वां संविधान संशोधन (1978) — संपत्ति के मूलाधिकार को समाप्त करके इसे विधिक अधिकार बना दिया गया।
- लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गई।
- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष्ज्ञ के चुनाव विवादों की सुनवाई का अधिकार पुनः सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय को ही दे दिया गया।
- मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रपति को जो भी परामर्श दिया जाएगा, राष्ट्रपति मंत्रिमंडल को उस पर दोबारा विचार करने लिए कह सकेंगे लेकिन पुनर्विचार के बाद मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को जो भी परामर्श देगा, राष्ट्रपति उस परामर्श को अनिवार्यतः स्वीकार करेंगे।
- ‘व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार’ को शासन के द्वारा आपातकाल में भी स्थगित या सीमित नहीं किया जा सकता, आदि।
52वां संविधान संशोधन (1985) — इस संशोधन द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इसके द्वारा राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगाने की चेष्टा की गई है।
55वां संविधान संशोधन (1986) — अरुणाचल प्रदेश को भारतीय संघ के अन्तर्गत राज्य की दर्जा प्रदान की गई।
56वां संविधान संशोधन (1987) — इसमें गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा देने तथा ‘दमन व दीव’ को नया संघीय क्षेत्र बनाने की व्यवस्था है।
61वां संविधान संशोधन (1989) — मताधिकार के लिए न्यूनतम आवश्यक आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
65वां संविधान संशोधन (1990) — ‘अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग’ के गठन की व्यवस्था की गई।
69वां संविधान संशोधन (1991) — दिल्ली का नाम ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली’ किया गया तथा इसके लिए 70 सदस्यीय विधानसभा तथा 7 सदस्यीय मंत्रिमंडल के गठन का प्रावधान किया गया।
71वां संविधान संशोधन (1992) – कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
73वां संविधान संशोधन (1992) – 73वां संविधान संशोधन अधिनियम ने संविधान में भाग IX और अनुसूची XI को शामिल किया और ग्रामीण स्थानीय प्रशासन (पंचायतों) की व्यवस्था की।
74वां संविधान संशोधन (1992) – 74वां संविधान संशोधन अधिनियम ने संविधान में भाग IX– ए और अनुसूची XII को शामिल किया और शहरी स्थानीय प्रशासन (नगरपालिकाओं) की व्यवस्था की।
86 वां संविधान संशोधन (2002) – यह (i) नए अनुच्छेद 21 ए को शामिल करता है जिसमें राज्य कानून द्वारा, निर्धारित तरीके से छह से चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा, का प्रावधान है।
91वां संविधान संशोधन (2003) – यह अनुच्छेद कहता है कि मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा के कुल सदस्यों के पंद्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
92वां संविधान संशोधन (2003) – यह अनुच्छेद संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं– बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली, को शामिल करने के बारे में है।
94वां संविधान संशोधन (2006) – यह अनुच्छेद कहता है कि संविधान के अनुच्छेद 164 की उपधारा (1) में, प्रावधान में, “बिहार” शब्द के लिए, “छत्तीसगढ़, झारखंड” शब्दों को प्रतिस्थापित किया जाएगा।
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